Wednesday, August 18, 2010

डूबती हुई कश्ती बना "हमार"

बिहार - झारखण्ड को केंद्र में रखकर चल रहे बहुभाषी न्यूज़ चैनल हमार टीवी के लिए पिछले छः महीने से कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है. चैनल के पटना स्थित कार्यालय से जो अन्दर की खबरे आ रही हैं उसे देखते हुए अगर यह कहा जाये की रांची के बाद अब चैनल के पटना कार्यालय का शटर गिरने की तैयारी है तो गलत नहीं होगा. और हमार टीवी के अन्दर जो कुछ हो रहा है उसके लिए चैनल का प्रबंधन ही ज्यादातर जिम्मेदार दिख रहा है. चैनल के अधिकांश कर्मियों को मई के बाद अबतक वेतन का भुगतान नहीं हुआ है और चैनल का हर बन्दा अपना जीवन चलाने के लिए पड़ोस के बनिए की रहमोकरम का ही मोहताज जान पड़ता है

हमार टीवी के नॉएडा स्थित प्रधान कार्यालय में कुछ महीनो पहले जब नेतृत्वा का बदलाव हुआ तो उम्मीद की गई थी की चैनल अब बेहतर करेगा लेकिन हमार प्रबंधन ने जब पटना से कर्मठ रिपोर्टरों अमित और प्रणय प्रियंवर की छुट्टी कर दी तभी यह तय हो गया की आगे पटना ब्यूरो का भगवान् ही मालिक है. पटना ब्यूरो से जब इन दोनों युवा रिपोर्टरों को बाहर किया गया उस वक़्त पटना के ब्यूरो आनंद कौशल की घर वापसी हो चुकी थी. आनद समन्दर में दूर निकल चुके जहाज के परिंदे की तरह हमार से निकले थे और वापस उन्हें हमार पर ही ठौर मिला. अमित और प्रणय की विदाई के बाद रिपोर्टर के तौर पर पटना में सिर्फ एक नाम बचा सीटू तिवारी का. आनन् फानन में हमार ने अपने दो जिला संवादाताओ नेहा गुप्ता और एस.के. राजीव को पटना में रिपोर्टर के तौर पर योगदान करा दिया. उस दौर में हमार के पटना  कार्यालय में कुल चार कैमरा मेन राजेश, सिन्धु मनीष , समर्थ और महताब अपनी सेवाए दे रहे थे. पटना से न्यूज़ बुलेटिन का प्रसारण का  पहले ही बंद किया जा चूका था और न्यूज़ एंकरों का नया डेरा नॉएडा बन चूका था.

चैनल के मालिको के आपसी पचड़े ने हमार के पत्रकार भाइयो का जो हाल किया वो किसी से छुपा नहीं है. चैनल की रेटिंग लगातार गिरती रही, कर्मचारियों की वेतन उधारी लिस्ट में चढ़ती रही. अब ऐसे में डूबते कश्ती की सवारी कोई कबतक करता. खबर है की हमार के कर्मियों ने अब नया ठिकाना बनाना शुरू कर दिया है. हमार से निकले गए प्रणय प्रियंवर बिहार - झारखण्ड से शुरू होनेवाले नए चैनल आर्यन का दामन पहले ही थाम चुके थे और अब चैनल की एकमात्र प्रतिभावान रिपोर्टर सीटू तिवारी भी आर्यन में योगदान कर चुकी है. पटना कार्यालय में खासतौर पर रिपोर्टिंग के लिए लाये गए एस.के. राजीव भी एक नए चैनल केटीएन का हाथ थाम चुके हैं. अब ऐसे में चैनल के साथ पटना से रिपोर्टर में सिर्फ एक ही नाम बचाता है नेहा गुप्ता का.

ताजा खबर यह है की चैनल के तीन कैमरा मेन ने वेअतन नहीं मिलाने के चलते काम पर आना ही बंद कर दिया है. ये तीन कैमरा मेन हैं राजेश, समर्थ और रांची ब्यूरो से पटना लाये गए शाहिद. इन्हें पिछले तीन महीने का वेतन नहीं मिला है. वन्ही आपको यह भी बता देना होगा की पटना हमार के के अन्य कैमरा मेन सिन्धु मनीष पहले ही आर्यन का रुख कर चुके हैं. अब हालात यह है की हमार पटना में कैमरा मेन के नाम पर सिर्फ एक नाम महताब का ही बचा है. इन लोगो के अलावा चैनल को दो स्ट्रिंगरो का सहारा जरुर है. 

अब ऐसे हालात में सवाल यह उठता है की क्या वाकई हमार प्रबंधन मंदी का शिकार है? अकेले पटना से विज्ञापन के तौर पर चैनल की होने वाली कमाई को देखकर ऐसा नहीं लगता. सूत्रों की माने तो  राज्य सरकार के एक मंत्री जी के कार्यक्रम के कवरेज के लिए अगर मोटी राशी दी गई तो वन्ही प्रदेश के एक बड़े नेता जी ने जब एक बड़ी पार्टी का दामन अपने गृह जिले में थमा तो उसका सीधा प्रसारण करने के लिए भी चैनल को पैसा मिला. एक अन्य महात्मा जी का रोज चैनल पर प्रसारण हो रहा है और बदले में बड़ी विद्यापन राशी भी आ रही है. अब ऐसे में हमार चैनल प्रबंधन से एक सवाल करना होगा की जब इतनी कमाई अकेले पटना से हो रही है तो पटना कार्यालय में कर्मियों को वह वेतन क्यों नहीं दे रहा है. निश्चित है हमार प्रबंधन की नियत में शुद्धता की घोर कमी है और उसका नजरिया अपने कर्मचारियों के प्रति बिलकुल घटिया.

अब ऐसे में हमार के छोटे कर्मो क्या करेंगे, जब उनके वरिष्ठो को मोटी  तनख्वाह हर महीने उनकी आँखों के सामने मिल रही हो इसलिए हमार में अब भगदड़ और तेज होनी तय है. डूबते कश्ती की सवारी कोई करना नहीं चाहता और अगर आने वाले दिनों में कई और चेहरे हमार पटना का साथ छोड़ जाये तो शायद ही ज्यादा आश्चर्य हो. हम तो हमार चैनल प्रबंधन से सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे की भले ही वो अपने चैनल के अन्दर काम करते वक़्त अपने पत्रकारों को वेतन नहीं दे सके हो लेकिन कम से कम अपनी लाज बचने के लिए  चैनल का साथ छोड़ जाने के बाद तो पत्रकारों के बकाये वेतन का भुगतान कर ही दे.

जय पाटलिपुत्र.......      जय पत्रकार.............. 

Sunday, August 15, 2010

पूंजीपतियों से हारती पत्रकारिता......

आज १५ अगस्त २०१० कि सुबह जब देश अपनी आजादी कि वर्षगांठ  माना रहा था मैं हाथ में पटना का एक महत्वपूर्ण दैनिक लिए एक और आजादी कि खबर पढ़ रहा था. लेकिन इस आजादी कि खबर को पढ़कर मुझे ख़ुशी नहीं हुई. दैनिक के तीसरे पन्ने पर जिस तरह से यह  नोटिस ( खबर नहीं सही मायने में नोटिस ) छपा उससे एक बार फिर से पत्रकारिता कि जलालत को मैंने महसूस किया. जनसाधारण को दी गई एक सूचना के तहत महुआ चैनल ने अपने पटना के पत्रकार ओमप्रकाश कि छुट्टी कर दी. अपने लम्बे अनुभव काल में मैंने आम तौर पर ऐसे नोटिस किसी के लापता होने, नाम बदलने, दिवालिया होने आदि पर छापते हुए देखा था. लेकिन मेरा यह पहला अनुभव था जब मैं किसी पत्रकार को उसके मालिको द्वारा इस तरह सार्वजनिक तौर पर नोटिस देकर चैनल से छुट्टी को पढ़ रहा था और मेरे लिए इतना ही कम न था कि मैं इसे पढ़ने को विवश था.

ओमप्रकश का सिर्फ नाम ही नहीं छापा गया उनका पूरा परिचय भी छापा गया मसलन पिता का नाम निवासी इत्यादि. साथ में एक निर्देश भी कि महुआअ के कर्मी उनसे कोई सरोकार न रखे. 
यह स्थिति अपने आप में बड़ी विचित्र है जब कोई किसी पत्रकार से कहे कि फलां पत्रकार से कोई सरोकार न रखो. मुझे नहीं लगता कि कोई भी पत्रकार इससे सहमत होगा. और देखा जाये तो यह आदेश वही लोग दे सकते हैं जो वास्तव में पत्रकारिता को समझते या जानते ना हो. इस नोटिस के दो मकसद थे पहला तो ओमप्रकाश कि महुआ से छुट्टी को सुनिश्चित किया जाये और दूसरा उसके बाद उठाने वाली आवाजो को निकलने से पहले ही बंद कर दिया जाये. दरअसल १५ अगस्त कि सुबह जो तुगलकी  फरमान ( क्यों कहा आगे लिखूंगा ) महुआ प्रबंधन ने जारी किया उसकी आहट हमे पहले ही हमारे सूत्रों से लग गई थी. हमने अपने पिछले पोस्ट में इसकी आशंका भी जताई थी. लेकिन नतीजा ऐसा और इस तरह से सबके सामने होगा इसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं कि होगी. हमने भी नही कि थी. 

गाँधी मैदान में तिरंगा फहरते फहराते सबको मालूम हो चूका था कि चैनल के इनपुट हेड मृत्युंजय ठाकुर पटना में कैम्प कर चुके हैं. और शाम तक पटना के ब्यूरो हेड गौतम मयंक को भी रास्ता दिखा दिया गया. मकसद साफ़ था बर्चस्व कि लड़ाई को ख़त्म कर दिया गया था लेकिन इस निर्णय को लेते लेते महुआ प्रबंधन ने पत्रकारिता का गला घोंट दिया था. जिसे कम से कम पटना हर सच्चा पत्रकार मौन रहकर देखने को विवश था.
माना जा रहा है कि चैनल से निकले जा चुके पूर्व कर्मी कि मेल के ऊपर कार्यवाई करते हुए प्रबंधन ने यह फैसला लिया. इस मेल को हम अपने पूर्व के पोस्ट में डाल भी चुके हैं. लेकिन ओमप्रकाश पर जिस तरह से सार्वजनिक तौर पर कार्यवाई कि गई वो एक सवाल बनकर हर पत्रकार के सामने खड़ा है. कि क्या हम पत्रकारिता इसीलिए करते हैं कि एक दिन हमारा नाम किसी भगोड़े या दिवालिया कि तरह से अखबार के पन्नो में चस्प कर दिया जाये ? ये वाकई दुखद है और उससे भी दुखद यह कि ओमप्रकाश को महुआ प्रबंधन ने अपनी बात तक रखने का मौका नहीं दिया. ओपी को भी इस फैसले कि जानकारी ठीक उसी तरह से मिली जिस तरह से अन्य दुसरे लोगो को. पटना स्थित कार्यालय के लोगो के लिए तो यह बिलकुल वैसे ही था जैसे रात को दर्शक टीवी पर किसी रियलिटी शो का ग्रांड फिनाले आधे में छोड़कर सो जाये और सुबह विजेता का पता अखबार के जरिये चले.

ओमप्रकाश पर जिस मेल के कारन कार्यवाई हुई उसमे सबसे महत्वपूर्ण एक सरकारी विज्ञापन का मामला था. मेल के मुताबिक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कि विश्वास यात्रा कि कवरेज के एवज में राज्य के सूचना जनसंपर्क विभाग ने महुआ को १.१० करोड़ कि राशि दी जबकि इसमें से ८० लाख का भुगतान ही चैनल को हुआ. ओमप्रकाश पर यह आरोप लगाया गया कि वह तीस लाख कि हेरा फेरी कर गए. आरोप गंभी हैं ओपी को जबाब देना चाहिए लेकिन उन्हें जबाब देने का मौका कौन देता , महुआ का प्रबंधन ही न ! लेकिन उसने स्पष्टीकरण कि बजाय सीधे तुगलकी फरमान जारी कर दिया. मामला एक तरफ़ा न लगे और पटना कार्यालय में गुटबाजी और तूल न पकडे इसका डर प्रबंधन को हुआ तो ब्यूरो चीफ गौतम मयंक कि भी छुट्टी कर दी गई. 

महुआ प्रबंधन ने भले ही इन दोनों पर कार्यवाई करते वक़्त अलग अलग मापदंड तय किये हो लेकिन उसकी मानसिकता इस बात का परिचय देने को काफी है कि वो खबरों के लिए अपना सबकुछ सौप देने वालो को अपनी पैर कि जूती से ज्यादा कुछ नहीं समझता है. देश भर में आज पत्रकारिता पूंजीपतियों कि रखैल बनने को विवश है. वो दौर और था जब पत्रकार अपने मूल्यों पर चलते हुए दो पेज कि अखबार को एक कमरे से निकाल लिया करते थे. आज सभी जानते हैं कि मिडिया हाउस चलाना सबसे बड़े पैसे का कारोबार है. यह पहला मौका नहीं जब पूंजीपति हाथो ने पत्रकारिता का गला घोटने का प्रयास किया है. पूर्व में भी ऐसा कई चैनलों में किया जाता रहा है लेकिन यह मामला अपने तौर पर इसलिए अजूबा है क्युकी एक पत्रकार को सार्वजनिक तौर पर न सिर्फ चैनल से निकल गया है बल्कि उसके मूल्यों को तार तार करते हुए उसे मनोबल को भी तोड़ने का प्रयास किया गया है. मुझे यह कहते हुए कोई संकोच नहीं कि ओमप्रकाश और गौतम मयंक के साथ जो कुछ भी हुआ उससे पूंजीपतियों के हाथो कठपुतली बनी पत्रकारिता शर्मसार हुई है और हम जैसे पत्रकार दुखी भी.

महुआ को पहला भोजपुरी चैनल का बनने का अगर गौरव प्राप्त हुआ तो उसे शीर्ष पर ले जानेवाले वही लोग थे जिसे प्रबंधन ने बाहर कर दिया. पटना से महुआ के लिए खबरे कभी नहीं लौंच हुए प्रकाश झा के मौर्य चैनल के लिए ठेकेदारी से ज्यादा कुछ नहीं हुआ करती थी लेकिन ओपी चैनल से जुड़े तो चैनल को जो लाभ हुआ यह किसी से छुपा नहीं है. खबरों का चयन और उनका प्रसारण का स्तर बताता था कि पटना कि खबरों कि क्या अहमियत थी. लेकिन महुआ प्रबंधन ने चैनल को शीर्ष पर ले जाने में महती भिमिका निभाने वाले अपने सिपाही को भी कंही का न छोड़ा.

मिडिया जगत के लिए पीके तिवारी का नाम भले ही बहुत पुराना न हो लेकिन उनके संपर्क काफी अच्छे रहे है. और इस पुरे प्रकरण में जो बात निकल कर आ रही उससे यह कहना गलत न होगा वो भी चाटूकारो से घिरे हैं जो निश्चित रूप से उनके फैसलों को प्रभावित कर रहे है. हाँ, इस पुरे प्रकरण में सबसे छोटे आदमी कि बात करनी और जरुरी हो जाती है. नाम- हीरालाल चौधरी, पूर्व कैमरा मेन महुआ पटना. ..... कोई बताएगा इसे क्या मिला या ये खुद ही बताये ??? शायद इसके पास कोई जबाब ही न हो लेकिन जबाब हम देते हैं. एक बार फिर से मिडिया कि बड़ी मछलियों ने इस छोटी मछली का इस्तेमाल किया. पहले शिवनारायण यादव और अब हीरालाल चौधरी दोनों इस्तेमाल हुए बदले में इन्हें थोड़ी आत्मसंतुष्टि मिली हो शायद.

यह बात हम इसलिए कह सकते हैं क्युकी मेल में जो तथ्य जिस तरह से लिखे गए वह इस अदने कर्मचारी के बस कि बात नहीं हो सकती. दो शब्द ओमप्रकाश और गौतम से भी, प्रबंधन ने आपके साथ जो भी किया उसपर आप अगर मौन रहे तो शायद आपलोग खुद ही अपने अन्दर के उस पत्रकार को मार देंगे, जो दुसरे कि हक कि लड़ाई हर वक़्त लड़ते रहा है. अगर आप अपनी लड़ाई नहीं लड़ेंगे तो कौन लडेगा. दो शब्द आप सब पाठको और अपने आप से, क्या हम यह सब बस यु ही देखते रहे और है प्रोफाइल जगहों पर बैठकर यह दंभ भरते रहे कि हम पत्रकार हैं, लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ. शायद अब इसका वक़्त नहीं, अब वक़्त आ गे है कि हम उन पूंजीपतियों को उनकी सीमाए बताये जो पत्रकारिता को अपनी रखैल से ज्यादा कुछ नहीं समझते. हमारी ताकत हमारी कलम है इसलिए आप सबो से आग्रह आप इस मसले पर अपनी राय रखे. हम उन्हें अवश्य पोस्ट करेंगे. आज जो ओमप्रकाश और गौतम मयंक के साथ हुआ है वो हममे से किसी के साथ भी कल  हो सकता है फिर हमारी लड़ाई में साथ कौन देगा. हमे एकजुट होना होगा क्युकी मेरी और आपकी आवाज ही मिलकर ही हम सबकी आवाज बनेगी.

जय पाटलिपुत्र.........     जय पत्रकार...........

Sunday, August 8, 2010

बर्चस्व कि लड़ाई....

जुलाई के पहले दो हफ्ते में टैम कि रेटिंग में बिहार-झारखण्ड का नंबर वन चैनल रहने का खूब ब्रेकिंग टीकर चला चुकी महुआ न्यूज़ के पटना कार्यालय में हालत और बिगड़ते जा रहे हैं. श्री कृष्ण पुरी कि मुख्य सड़क पर कार्यालय और कार्यालय के सामने खड़ी दो-दो ओवी वैन यह बताने को काफी है कि चैनल बिहार का नंबर वन बन चूका है. लेकिन कार्यालय के अन्दर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, पुरे पटना का मिडिया जगत यह जान रहा है कि पटना महुआ में दो गुट बन चुके हैं और जमकर खेमेबाजी भी हो रही है. चैनल प्रबंधन ने जब से नायेर ब्यूरो चीफ के तौर पर गौतम मयंक को पटना भेजा है तस्वीर तभी से ऐसी ही है. चैनल को बिहार में पहचान दिलवाने वाले पूर्व ब्यूरो चीफ ओमप्रकाश कि कुर्सी जब गौतम मयंक को दी गई तो महुआ के अन्दर क्या कुछ हुआ यह किसी से छुपा नहीं है. पटना में योगदान देने के बाद गौतम यह किसी को बताना नहीं भूले कि वो पटना के ब्यूरो हैं और चैनल के छोटे कर्मचारियो उनके इस दबाव पर इस्तेमाल भी हुए अब यह अलग बात है कि ओमप्रकश को प्रबंधन ने स्टेट हेड बना दिया. कुल मिलकर खबरों के चयन में सिक्का ओपी का ही चला. 
मिडिया होउसज में जब बड़ो के बीच बर्चस्व कि लड़ाई छिड़ती है तो छोटे पत्रकार कैसे इसका इस्तेमाल होते हैं इसका नमूना महुआ में देखने को मिला. दानापुर से स्ट्रिंगर के रूप में कार्यरत रहे शिवनारायण यादव ने ओमप्रकश पर उत्पीडन का आरोप लगाते हुए भड़ास 4 मिडिया को पत्र लिखा और और महुआ से छुट्टी हो जाने के बाद इस पत्रकारिता जगत को छोदनेकी भी बात कही. शिव एक भावुक इन्सान हैं, मैं व्यक्तिगत तौर पर भी उसे जानता हु.  उसने अपना दर्द लिखा कम पैसे में ज्यादा काम करने  का दर्द लेकिन शायद वह इस सबसे अनजान था कि उसका इस्तेमाल बड़े खिलाडी अपने गेम को मजबूत करने के लिए कर रहे थे.

पटना महुआ में एक और शिव खड़ा हो गया है. बिहार में चैनलों लौन्चिंग से पहले से ही महुआ के साथ जुड़े रहे इस नए शिव के निशाने पर एक बार फिर से चैनल के स्टेट हेड ओमप्रकश हैं. जाहिर है सारा खेल परदे के पीछे से चल रहा है. इस नए शिव ने ओमप्रकाश और कैमरा मेन मुन्ना शर्मा को निशाना बनाते हुए चैनल के प्रमुख पीके तिवारी को लम्बा चौड़ा पत्र लिखा है. नए और पुराने शिव में कई समानताये हैं. दोनों को महुआ से बाहर का रास्ता दिखाया जा चूका है, दोनों ही सबसे निचले पायदान के मीडियाकर्मी हैं, दोनों ही मेहनती हैं, दोनों को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हु और दुर्भाग्य से दोनों का इस्तेमाल उनकी भावनाओ को उकसा कर किया गया है. 

चैनल के मालिक पीके तिवारी को लिखे पत्र में ओमप्रकश पर गंभीर आरोप लगाये गए हैं. अभी इसपर ज्यादा कुछ  कहना सही नहीं होगा. हाँ, चैनल प्रबंधन को ओपी क्या जबाब देंगे यह देखना महत्वपूर्ण होगा.
इस पोस्ट के साथ मैं उस मेल कि एक प्रति संलग्न कर रहा हु जो आनेवाले समय में महुआ के बर्चस्व कि लड़ाई को और तेज करेगा. लेकिन हमे दुःख इस बात का होगा कि अच्छे खबरों को प्रसारित करने वाले महुआ
के अन्दर कि ये खबर अच्छी नहीं है. खैर , हम पाटलिपुत्र के पत्रकारों को यह सब देखने कि लगता है आदत सी पड़ चुकी है.

जय पाटलिपुत्र.........      जय पत्रकारिता............

मित्रो जब से इमेल का चलन आया उसके साथ ही उसके लीक होने का इतिहास भी शुरू हुआ. महुआ चैनल के कार्यालय में पंहुचे इस अति गोपनीय मेल को हमतक किसने पंहुचाया यह तो हम बता नहीं सकते लेकिन इस मेल को हमतक पंहुचने के लिए हम उनका आभार व्यक्त करते है. इस मेल के कुछ अंशो को ****** में बादल दिया गया है. इसकी सत्यता पर हमे उतना की विश्वास है जितना आपको हमपर.

Dear sir

My name is ***********.I have worked for Mahuaa since starting
in Bihar free of cost for two n half years.Using my own bike with fuel
n camera.But when office started in patna then office used me as
camera person.That time office paid  salary only 3 thousands only.But
in this salary fuel was including.But till date I have worked on same
salary.when I have told to bureau Mr Om prakash & camera person Munna
sharma to permanent me he always saying that I will,then I told if you
don’t permanent me please increase my salary but he don’t done & he
made camera person to his family & his friends.But munna sharma was
not working n he take work from me.Om prakash appointed persons which
are not experienced .Only they are his relatives of his friends.When I
have told Mr Om prakash (Channel head) my problem he told that it is
happening wrong with me.Old employees must be preffered.

In this month Bureu & head camera person Munna sharma has terminated
me.When I asked tha reason they don’t reply me.i hav worked mahuua for
24 hrs in a day. My camera has been problem but I hav worked for
mahuaa.
After termination I hav talked to channel head then he told me to talk
with Mr Mrituanjay thakur.He told me I will tell u. But he has not
responded me.
But sit I want to tell u reason of my termination.
Mr  op(patna) & munna sharma (camera man) was doing false works in
office. He was making false bills of many items. And he was sending
false bills to office n brought cheque from noida.He made all false
bills from me and from that bill he earned 40 to 50 thousands in a
month.and he was using office vehicle for his personal use. And made
bill on the name of tour,but when I opposed to doing this he thought
that I knowevery black work of him then he was planned to terminate
me.He was saying that I hav touched with owner of mahuua n anyone just
like channel head n any officer of mahuua cant do any thing against
me.I m mahuua owner of bihar.
I n telling u false works of  op n munnaa sharma
1 In the viswas yatra of Nitish kumar ,the fixing was of 1.10
gave him 80 lakhs from cheque from tha name of Mahuaa news
.he gave Mahuaa only that 80 lakhs n he has taken rest 30 lakhs in his
account.When I asked him y u hav done like this,he told I will also
give u some ruppess.But I was not agreed.
Sir I want to say u pls enquiry this event n give me justice.I m very
poor person . I hav served mahuaa for two years .

Regards ************************
camera man .Mahuaa ,patna,Bureau office
Mob - ***********

Sunday, August 1, 2010

एक नई शुरुआत.....

प्रिय मित्रो, शुभारम्भ ...इस मंच के माध्यम से पहली दफा मैं आप सबो से मुखातिब हो रहा हु. और इस वचनबद्धता के साथ कि हम सब के बीच यह संवाद अब जारी रहेगा. इससे पहले कि हमारा यह संवाद जारी हो आप सबो को मेरे परिचय का इन्तजार अवश्य कर होगा, मैं भी यह जनता हु. लेकिन मैं आपको अपने बारे में सिर्फ इतना बता दू कि मैं भी आप सब पटना के मिडियाकर्मी के बीच का ही एक चेहरा हु. हाँ, कुछ व्यावसायिक मजबूरियां हैं जिसकी वजह से मैं अपना सामाजिक परिचय सार्वजनिक करने में अक्षम हु. उम्मीद है आप मेरे इस ब्लॉग पर आने का कारन जानने के बाद मुझसे सहमत होंगे.

मित्रो बिहार और पत्रकारिता का रिश्ता हमेशा से बड़ा गहरा रहा है. यह हम सब जानते हैं. यह गहरे खबरों के मामले में तो रही ही है उससे अलग खबरों को बनने वाले किस कदर खबरों में रहे हैं यह भी इस रिश्ते को और गहरा करता है. प्रिंट मिडिया में जो स्थान कभी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का हुआ करता बता आज वही स्थान टीवी पत्रकारिता के अन्दर बिहार का बन चूका है. या यु कह ले कि बिहार के पत्रकार सुरमाओ ने इसपर एकाधिकार जामा लिया है तो यह कहना गलत नहीं होगा. पुण्य प्रसून बाजपेयी से लेकर रविस कुमार तक और अजय कुमार से लेकर मिडिया हाउस में काम कर रहे हर बिहारी पत्रकार कि सफलता कि कहानी यह सब कुछ साबित करने को काफी है. 

पाटलिपुत्र कि धरती इसकी जान है. जंहा तमाम राष्ट्रिय चैनलों के कार्यालयों के साथ साथ बिहार - झारखण्ड को केंद्र में रखकर चल रहे तकरीबन आधा दर्जन टीवी न्यूज़ चैनलों के बड़े कार्यालय भी है. दिलचस्प यह है कि 
राष्ट्रिय चैनलों के पटना सतत कार्यालय जंहा बिहार को कह्बरो कि उत्पादन स्तःली समझकर यंहा से खबरे निकालते हैं वंही क्षेत्रीय चैनल अपने अन्दर कि हर तरह कि कहानियो के लिए खबरों में रहते है. पटना कि धरती पर टीवी पत्रकारिता में नाम कमा चुके तक़रीबन तीन दर्जन बड़े पत्रकारों का सिक्का चलता है लेकिन इन्ही के निचे संघर्ष कर रहे और अपनी पहचान साबित करने में जुटे सैकड़ो  पत्रकारों का शोषण शायद हर दिन हर घंटे होता है. जिसकी टीस इनके अन्दर ही दबकर रह जाती है लेकिन आज के बाद हम हर उस दर्द को सबके सामने रखेंगे और कोशिश करेंगे कि ऐसा दर्द हम बाँट कट हल्का कर सके. 

मित्रो यह ब्लॉग हम सबका है. पटना और बिहार - झारखण्ड से जुड़े हर उस सच्चे पत्रकार का है जो खबरों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को समझता है. अगर आप पटना बिहार-झारखण्ड के किसी मिडिया हाउस में कार्यरत हैं और आपके साथ कुछ भी ऐसा अनुचित हो रहा है जो नहीं होना चाहिए तो आप इस मंच पे संवाद करे लेकिन कोई भी मित्र इसका गलत इस्तेमाल न करे यह गुजारिश है क्युकी हम ब्लॉग पर कुछ भी लिखने से पहले तथ्यों का सत्यापन अवश्य करेंगे. क्युकी पत्रकारिता कि पहली शर्त सत्यता ही है. हम आपको यह विश्वास दिलाते हैं कि इस ब्लॉग का इस्तेमाल किसी भी व्यक्ति विशेष को लाभा पंहुचने के लिए कभी 
नहीं किया जायेगा. हम पटना कि मिडिया जगत के अन्दर कि खबरे आप तक पंहुचायेंगे लेकिन उसी प्रतिबद्धता के साथ जिसके साथ हम खबरों का संकलन करते हैं. हमारा मकसद किसी के खिलाफ जंग का एलान करना नहीं. हाँ, उन सबकी एकता को एक मंच पर लाना जरुर है जो यह गर्व करते हैं कि हम पाटलिपुत्र के पत्रकार हैं.

जय पाटलिपुत्र......  जय पत्रकार..........